किशोर नाम का एक गरीब किसान सूरजपुर गांव में अपनी पत्नी शोभा और दो बच्चों के साथ रहता था। किशोर
गांव के जमींदार चौधरी चरण सिंह की जमीन पर फसल उगाने का काम करता था, जिससे उसे पैसे मिलते थे।
शोभा ने कहा:- "सुनिए जी, राशन खत्म हो गया है, शाम को आते हुए ले आना,"
किशोर ने कहा:- "बारिश के कारण फसल भी सही नहीं हो रही, खराब हो रही है। जमींदार साहब इसलिए पैसे
नहीं दे रहे हैं, फिर भी मैं शाम तक कोई इंतजाम करता हूं। जमींदार जी से मांगता हूं कि थोड़े पैसे अगर पहले ही दे दें,"
किशोर खेत पर पहुंचता है, फसल काफी अच्छी लग रही थी, जिसे देख किशोर बेहद खुश हो रहा था। तभी
जमींदार चौधरी चरण सिंह वहां आता है।
किशोर ने कहा:- "फसल तैयार होने में और बाजार में बिकने में समय लगेगा। मेरे पिछले पैसे सब घर खर्च
में लगा दिए। मुझे घर के राशन के लिए थोड़े पैसे चाहिए थे,"
चौधरी ने कहा:- "जरा सी तारीफ कर लो तुम लोगों की, तो तुम लोग सर पर ही चढ़ जाते हो। एक पैसा नहीं
मिलेगा जब तक फसल अच्छे दामों में बिक नहीं जाती,"
अगले कुछ दिनों तक किशोर को घर में खर्च की बड़ी परेशानी होती है। किशोर बस इसी उम्मीद पर था कि
जमींदार की फसल बिकेगी तो उसे उसके काम के पैसे मिल जाएंगे। पर मानसून की शुरुआत में ही मूसलाधार
बारिश का कहर पूरे सूरजपुर गांव पर आ गया। लगातार एक हफ्ते तक बारिश नहीं रुकी। इसके कारण जमींदार
की सारी फसल खराब हो गई। पर जमींदार तो पैसे वाला था, इस बार नहीं तो अगली बार फिर फसल उगा लेगा।
पर उसने फसल खराब होने का सारा गुस्सा गरीब किसान किशोर पर निकाल दिया।
चौधरी ने कहा:- "कौन से पैसे? कोई पैसे तुझे नहीं दूंगा। देख नहीं रहा, सारी फसल खराब हो गई है। मेरा भी तो
पैसा लगा था। अब जब फसल नहीं तो कहां के पैसे। चल जा यहां से, तुझे कोई पैसा नहीं मिलेगा। बताओ जरा,
एक तो यहां नुकसान हो गया, ऊपर से अपने पैसे मांग रहा है, चल भाग यहां से,"
किशोर ने कहा:- "मैंने काम तो किया था ना। मेरी तो पूरी मेहनत लगी है। मैंने फसल की देखभाल अच्छे से की
थी। इसमें मेरी क्या गलती है जब बारिश का कहर फसल पर आ गया,"
किशोर ने कहा:- "और, बारिश वक्त से पहले आ गई। मैं तो फसल काटने ही वाला था। मेरे साथ-साथ और भी
लोगों की फसल खराब हुई है। ऐसा ना करो मालिक, मेरा तो घर इसी काम से चलता है,"
चौधरी ने कहा:- "ऐसे नहीं मानेगा तू। अभी अपने नौकरों से कहकर तुझे हवेली से बाहर फेंकवाता हूं,"
जमींदार के आदमी किशोर को धक्के देकर हवेली से बाहर फेंक देते हैं। किशोर बहुत दुखी होता है। वह रात को
घर भी नहीं जाता, वहीं जमींदार की खेत के पास बैठा हुआ मूसलाधार बारिश में रोता रहता है। तभी शोभा उसे
ढूंढते हुए आ जाती है।
"सुनो जी, कब तक यहां बैठे रहोगे। बारिश बहुत तेज है, बीमार पड़ जाओगे। घर चलो, बच्चे भी घर पर अकेले हैं।
मैं सुबह से तुम्हारा इंतजार कर रही हूं," शोभा की बात सुनकर किशोर घर चला जाता है।
पर उसका मन नहीं लग रहा था। आधी रात के समय वह घर से उठकर वापस खेत पर आ जाता है और खराब हुई
फसल को देखता रहता है। अचानक उसे दो आदमी एक बोरी को उठाकर ले जाते हुए दिखाई पड़ते हैं। वे हवेली
के पीछे वाले रास्ते से आ रहे थे। किशोर उन्हें रोकता है।
"कौन हो तुम, और हवेली में ये क्या लेकर जा रहे हो? क्या तुम चोर हो? रुको जरा," किशोर ने कहा।
"अरे छोड़, छोड़। मैं कहता हूं छोड़, वरना तुझे जान से मार देंगे," चोरों में से एक ने कहा।
"इस बोरी में क्या है? तुम हवेली में से चोरी करके जा रहे थे। दिखाओ तो जरा," किशोर ने कहा।
किशोर और चोरों के बीच छीना झपटी हो रही थी। तभी हवेली से चौधरी चरण सिंह की बहू चीखती हुई बाहर आई।
"मेरा बच्चा कहां गया? मेरा बच्चा कमरे में नहीं है," उसने कहा।
सभी लोग शोर सुनकर हवेली से बाहर आ जाते हैं। किशोर वहां घायल अवस्था में खड़ा था। एक चोर भाग गया था,
पर एक वहीं गिरा हुआ था। किशोर बोरी का मुंह खोलता है। बोरी में कोई और नहीं बल्कि जमींदार चरण सिंह का
पोता बंटी था।
"बंटी! मेरा बच्चा! भगवान, मेरे बच्चे को ये लोग लेकर जा रहे थे। मेरी आंखों के सामने मैंने देखा। बंटी बिस्तर पर
नहीं था। इसका एक और साथी भी है जो भाग गया। यह पीछे के रास्ते से इस बोरी में बंटी को ले जा रहे थे। वह तो
मैं यहां था तो इन्हें पकड़ लिया," किशोर ने कहा।
"तुम मेरे पोते का अपहरण करके ले जा रहे थे? बताओ, तुम कौन हो? मैं अभी पुलिस को बुलाता हूं," चौधरी ने
कहा।
"हमने सुना था कि तुम्हारे पास बहुत पैसा है। हम इस गांव में चोरी करने के लिए आए थे। सबसे ज्यादा अमीर तुम
ही हो, इसलिए हमने तुम्हारे पोते को उठा लिया ताकि हम तुमसे इसके अपहरण के बदले पैसे ले सकें। पर इस
आदमी ने हमें पकड़ लिया। मेरा साथी भाग गया है," चोर ने कहा।
चौधरी चरण सिंह के सामने सारी सच्चाई आ जाती है। उसे अपने ऊपर बहुत पछतावा होता है कि वह गरीब
किशोर के पैसे मार रहा था। जिसने आज उसके घर के चिराग को बचाया। चौधरी की बहू, बेटा, और पत्नी भी
किशोर को धन्यवाद कहते हैं। चौधरी चरण सिंह किशोर से माफी मांगता है और उसकी मेहनत के पैसे उसे देता
है। किशोर को अपनी मेहनत के पैसे मिल जाते हैं और वह खुशी-खुशी घर लौटता है। अगली फसल तैयार करने
के लिए जमींदार किशोर को एडवांस में ही पैसे दे देता है। उसने एक गरीब किसान की मजबूरी को समझा और
दिल से अपने व्यवहार को बदल दिया।
#2 गरीब परिवार की कहानी
महेश नाम का व्यक्ति अपनी बीबी रानी , 6 साल की बेटी पिंकी, और 8 महीने के बेटे बिट्टू के साथ रहता था। एक
पल में जिंदगी कितनी बदल जाती है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण महेश था। एक हादसे में उसने अपना पैर खो
दिया और अपनी नौकरी भी। घर में जो भी जमा पूंजी थी, वह उसके इलाज में खर्च हो गई। पिछले 3 महीने से वह
बेरोजगार था। इन तीन महीनों में उसने नई नौकरी ढूंढने की बहुत कोशिश की, लेकिन एक अपाहिज को कोई भी
नौकरी नहीं देना चाहता था। अब तो बारिश का मौसम भी शुरू हो गया था। इस मौसम में उसे एक जगह से दूसरी जगह
जाने में बहुत दिक्कत होती थी क्योंकि सड़क पूरी तरह पानी से भर जाती थी। आज भी वह परेशान अपने घर लौट
रहा था।
महेश ने सोचा:- "आज भी मुझे कोई काम नहीं मिला। सब लोग मुझे ऐसे नजरें चुराते हैं जैसे कि मैं कोई भूत हूं।
और उसका परिवार क्या भूख से मर जाए?"
महेश बार-बार की असफलता से परेशान हो चुका था। उसका मकान मालिक 3 महीने का किराया वसूलने हर
दूसरे दिन उसके घर आ जाता था। साथ ही घर खाली करवाने की धमकी भी देता था। कल शाम भी वह आखिरी
चेतावनी देकर गया था। घर में खाने का एक भी दाना नहीं था। पिछले दो दिन से पूरे परिवार ने कुछ भी नहीं खाया
था। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे। वह ये सब सोचते-सोचते जा ही रहा था कि तभी
जोर की बारिश शुरू हो जाती है।
महेश ने सोचा:- "कहीं छिप जाना चाहिए। बारिश में तबीयत खराब हो गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे,"
उसे पता था कि घर में कुछ भी खाने के लिए नहीं है। उसने अपनी जेब में हाथ डाला तो उसे केवल ₹10 का पुराना
नोट मिला।
"क्या करूं? जब मैं उसके लिए पकौड़े ले जाऊंगा तो वो बहुत खुश होगी," उसने सोचा।
पहले उसने बहुत सोचा, फिर उसने उन पैसों से पकौड़े खरीद लिए। थोड़ी देर बाद बारिश बंद हो गई। फिर वह
पकौड़े लेकर घर पहुंचा। लेकिन घर के बाहर पहुंचने ही उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसकी बीबी और बच्चे
घर के बाहर खड़े थे, और उसका 8 महीने का बेटा बिट्टू अपनी मां की गोद में लगातार रो रहा था। पिंकी सहमी
हुई अपनी मां का आंचल पकड़कर खड़ी थी। और उनका मकान मालिक उनका सामान सड़क पर फेंक रहा था।
उसकी बेटी ने जब उसे देखा तो वह भागते हुए महेश के पास आई और रोते हुए कहने लगी, "पापा, और जो मेरी
छोटी सी गुड़िया थी ना, जो आप लाये थे, अंकल ने उसे भी नाली में फेंक दिया।"
महेश ने अपनी बच्ची को चुप करवाया और जाकर मकान मालिक के पैरों में गिर पड़ा।
"ये आप क्या कर रहे हैं मालिक? इस तरह हमें बेघर मत करिए," महेश ने कहा।
"चुप कर, पहले 3 महीने का किराया हाथ में रख, फिर बात कर," मकान मालिक ने कहा।
"मैं जल्दी ही आपके सारे पैसे चुका दूंगा," महेश ने कहा।
"मेरे कान पक गए हैं तुम्हारे झूठ सुन-सुन कर। मेरे किराये के लिए तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं और पकौड़े पार्टी
करने के लिए पैसे हैं?" मकान मालिक ने कहा और पकौड़े का कागज महेश के हाथ से छीनकर फेंक दिया। फिर
वह अपने घर में ताला लगाकर चला गया।
वह परिवार बचने की कोशिश में था, लेकिन उन्हें कहीं भी जगह नहीं मिली। रानी अपने छोटे से बेटे को अपनी
गोद में लगाए चली जा रही थी। तभी बारिश के साथ-साथ ओले भी गिरने लगे।
"हे भगवान, गरीबों को तकलीफ देने में आपको बहुत मजा आता है ना।" रानी ने सोचा।
वो सभी सीमेंट वाले पाइप के अंदर बैठ गए और बारिश के रुकने का इंतजार करने लगे, लेकिन बारिश रुकने का
नाम ही नहीं ले रही थी। तभी उन्होंने देखा कि उनके सीमेंट वाले पाइप से कुछ दूरी पर एक बड़ी सी गाड़ी आकर
रुकी।
उसमें से दो कपल बाहर निकले और बारिश में भीगने लगे।
( कपल ) "बारिश में भीगने का अपना अलग ही मजा है ना, काजल," अखिल ने कहा।
"सच में, अखिल। बारिश में भीगना और उसके बाद गरम-गरम पकौड़े खाना, जन्नत का मजा देता है," काजल ने कहा।
महेश का परिवार बारिश के रुकने का इंतजार कर रहा था और दूसरी ओर एक और परिवार पूरी रात बारिश का
मजा ले रहा था। कितनी असमानता है ना भगवान की बनाई इस दुनिया में। महेश और उसकी बीबी यही सोच रहे
थे और साथ ही बारिश के रुकने का इंतजार भी कर रहे थे। लेकिन बारिश नहीं रुक रही थी और वह और भी तेज
होती जा रही थी। सड़कों पर पानी भरने लगा और लगातार 2 दिन की बारिश के कारण बाढ़ जैसी स्थिति पैदा होने
लगी। उनके सीमेंट वाले पाइप में भी पानी आ गया। उन्हें वहां से निकलना पड़ा।
"यहां से जाना होगा, नहीं तो हम सब डूब जाएंगे," महेश ने कहा।
महेश ने अपनी बेटियों को नियंत्रण में रखने की कोशिश की, लेकिन दुर्भाग्य से पिंकी गिर पड़ी और पानी के तेज
बहाव में बहने लगी। पिंकी पल में ही उनकी आंखों से ओझल हो गई।
"मेरी बच्ची!" महेश ने चिल्लाया।
लेकिन पिंकी ने कोई जवाब नहीं दिया। आज महेश खुद को बहुत ही असहाय महसूस कर रहा था। एक असहाय
पिता की तरह ऊपर आसमान की तरफ देखकर चिल्लाया, "भगवान, तुम्हें जरा भी दया नहीं आई क्या हम गरीबों
पर?
पूरे पत्थर हो गए हो क्या? पहले तो मुझे अपाहिज कर दिया, फिर दर-दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर कर
दिया, फिर सिर से छत भी छीन ली और अब मेरी बच्ची को भी ले लिया!"
लेकिन शायद मौत अभी उनके हाथ की रेखाओं में नहीं लिखी थी। तभी बाढ़ राहतकारी वालों की नजर उन पर
पड़ी और वे उन्हें अपनी नाव में बचाकर राहत शिविर में ले आए।
राम और महेश ने देखा कि उनकी बच्ची पिंकी भी सुरक्षित है। वह पिंकी को देखकर खुश हो गए और ऊपर वाले
का शुक्रिया अदा किया। पूरे एक महीने वह लोग राहत शिविर में रहे। उसके बाद सरकार ने उन्हें कुछ पैसे
मुआवजे के तौर पर दिए, जिससे वह नई जिंदगी की शुरुआत कर सकें। आज महेश एक चाय-पकौड़े की दुकान
चलाता है। उसकी जिंदगी अब पहले से बेहतर हो गई है। बारिश ने परीक्षा तो ली, लेकिन इस बारिश ने उसे फिर
से अपने पैरों पर खड़े होने का मौका भी दे दिया।